हमें एक दिन में कितने कदम चलना चाहिए ?

आज बहुत से लोग अपनी स्मार्ट वॉच, पीडोमीटर और फ़ोन पर मौजूद ऐप के ज़रिए अपने हर क़दम को गिनते चलते हैं. हम सब, उस दिन बहुत ख़ुश हो जाते हैं, जिस दिन हमारे 10 हज़ार क़दम पूरे हो जाते हैं.
कुछ लोगों को ये क़दम-ताल गिनने वाले उपकरण एक धोखा लगते हैं. उन्हें यक़ीन नहीं होता कि ये मशीनें हर क़दम का सही-सही हिसाब रखती हैं. आप चाहे दौड़ें या अलसाए हुए धीरे-धीरे चहलक़दमी करें, ये ऐप या स्मार्ट वॉच दोनों में फ़र्क़ नहीं करते. फिर भी, इनके ज़रिए हमें ये पता चल जाता है कि हम कितने एक्टिव हैं.

तो, अगर आप अपने उठाए हुए हर क़दम का हिसाब रखते हैं, तो ये भी दिमाग़ में होगा कि कितने क़दम चलने का लक्ष्य हासिल करना है. ज़्यादातर ऐप या उपकरण दस हज़ार क़दमों के हिसाब से सेट होती हैं. ये वही आंकड़ा है, जो दुनिया भर में मशहूर है कि हमें रोज़ाना दस हज़ार क़दम पैदल चलना चाहिए. आप ने भी दस हज़ार क़दम वाला हिसाब सुना ही होगा. शायद आप को ये लगता हो कि दस हज़ार क़दम चलने का लक्ष्य बहुत हिसाब-किताब लगाकर या बरसों की रिसर्च के बाद तय किया गया होगा. मज़े की बात ये है कि ऐसा कोई रिसर्च नहीं मौजूद है, जो ये कहे कि 8 या बारह नहीं बल्कि दस हज़ार क़दम चलना ही सेहत के लिए मुफ़ीद है.


अगर आप नहीं जानते, तो ये जान लीजिए कि रोज़ दस हज़ार क़दम चलने का ये नुस्खा एक मार्केटिंग अभियान का हिस्सा था. 1964 में जापान की राजधानी टोक्यो में हुए ओलंपिक खेलों के दौरान पीडोमीटर बनाने वाली एक कंपनी ने अपना प्रचार मैनपो-केई (Manpo-Kei) नाम के जुमले के साथ किया था. जापानी भाषा में मैन (man) का मतलब होता है 10, 000, पो (po) का मतलब होता है क़दम और केई (kei) का अर्थ होता है मीटर. पीडोमीटर बनाने वाली कंपनी का ये प्रचार अभियान बहुत क़ामयाब रहा था. तभी से लोगों के ज़हन में बस गया कि अच्छे स्वास्थ्य के लिए रोज़ाना दस हज़ार क़दम पैदल चलना चाहिए.
उस के बाद से कई ऐसे रिसर्च किए गए हैं, जो पांच हज़ार बनाम दस हज़ार क़दमों के फ़ायदे और नुक़सान का हिसाब लगाएं. लेकिन, ज़्यादातर तजुर्बे इसी नतीजे पर पहुंचे कि रोज़ाना दस हज़ार क़दम चलना ही बेहतर होता है. क्योंकि ये ज़्यादा क़दम का आंकड़ा है. लेकिन, हाल के दिनों तक पांच हज़ार से 10 हज़ार से बीच चले गए क़़दमों के फ़ायदे-नुक़सान के बारे में कोई रिसर्च नहीं हुई थी !   (बी बी सी के सौजन्य से )
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