आखिर क्यों बदहाल है देश का सैकड़ों वर्ष पुराना शहर

Sambhal UP - Old City
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जिला संभल उत्तर प्रदेश के सबसे पुराने शहरों में गिना जाता है। लेकिन विकास के स्तर पर देखा जाएं तब संभल उत्तर प्रदेश के पिछड़े जिलों में खड़ा मिलता है। जिसके लिए कुछ हद तक संभल के राजनेता ही जिम्मेदार है।

संभल की जनता ने संभल का राजनीतिक स्तर पर प्रतिनिधित्व करने के लिए उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव, डी पी यादव, रामगोपाल यादव, डॉ. सफीकुर रहमान बर्क, नवाब इक़बाल पूर्व मंत्री अकीलुर्रहमान खां आदि को चुना था लेकिन विकास के मुद्दे में सभी नेता एक ही पटरी पर चलते नज़र आते है।

संभल को आधुनिक युग में ले जाना तो दूर यहाँ के राजनीतिक कलाकार संभल को मामूली सुविधाएं भी मुहैया नहीं करा सकें है। जो मूलभूत सुविधाएं प्रत्येक शहर में होनी आवश्यक है संभल निवासी उन सुविधाओं से भी दूर है।

रोडवेज़ बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, कोई यूनिवर्सिटी या कॉलेज यह सभी समस्याएं शहर में बनी हुई है जिसकी तरफ किसी भी राजनेता का ध्यान नही गया है।

28 सितम्बर, 2011 तत्कालीन मुख्यमंत्री ने संभल को सूबे का 75वां जिला बनाने का एलान किया था। इस नए जिले को भीम नगर के नाम से दिया गया था। जिसको अगली सपा सरकार ने रद्द करके फिर से संभल कर दिया था। इस जिले में तीन तहसीलें शामिल की गई हैं, जिनमें दो मुरादाबाद जिले से और एक बदायूं से ली गई थी।


 ज़िले की घोषणा होने के बाद संभल के विकास की उम्मीद की गयी थी लेकिन मुख्यालय के लिए बहजोई का चयन होने के बाद यह किरण भी धूमिल हो गयी और अभी हाल ही में सरकारी अस्पताल और जिला न्यायालय के निर्माण के लिए भी चन्दौसी का चयन होने से संभल के विकास पर बादल मंडरा रहे हैं। इससे पहले मुंसिफ अदालत संभल में ही लगती थी जो अब चन्दौसी में लगा करेंगी।

संभल का इतिहास

संभल की जागीर बाबर के आक्रमण के समय अफ़गान सरदारों के हाथ में थी। बाबर ने हुमायूँ को संभल की जागीर दी लेकिन वहाँ वह बीमार हो गया, अतः आगरा लाया गया। इस प्रकार बाबर के बाद हुमायूँ ने साम्राज्य को भाइयों में बाँट दिया और संभल अस्करी को मिला। शेरशाह सूरी ने उसको खदेड़ दिया और अपने दामाद मुबारिज़ ख़ाँ को संभल की जागीर दी।

यह प्राचीन शहर एक समय महान चौहान सम्राट पृथ्वीराज चौहान की राजधानी भी था व संभवतः यह वहीं है जहाँ वह अफगानियों द्वारा द्वितीय युद्ध में मारे गए।

1991 की जनगणना में संभल को पूरे देश में न्यूनतम साक्षरता वाला पाया गया था। लेकिन समय के साथ स्थितियों में सुधार आया। वही 2011 की जनगणना के अनुसार संभल की साक्षरता 48% है।

संभल से जुड़ी कुछ मशहूर हस्तियां

यहाँ से पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और प्रोफेसर रामगोपाल यादव भी सांसद रहे हैं। हाफिज हबीबुर्रहमान सैफी ने हड्डी-सींग से आभूषण बनाकर संसार में संभल को पहचान दी। अब तो विदेशों में हड्डी-सींग से बने सुंदर-सुंदर आभूषण बहुत पसंद किए जाते हैं। इसके अलावा मैंथा का बड़ा कारोबार भी संभल की पहचान है।

संभल के सराय तरीन के रहने वाले कारोबारी नदीम तरीन तो अपनी समाजसेवा के लिए विश्वविख्यात है। नदीम तरीन ने अपनी शिक्षा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पूरी करने के बाद सऊदी के रियाद से अपने कारोबार की शुरुआत की थी। नदीम तरीन ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में नदीम तरीन नाम से एक छात्रावास के साथ साथ संभल में एक आईटीआई और रामपुर में जौहर यूनिवर्सिटी के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बाबू इरफ़ान हुसैन और सेठ क़ासिम जी  का नाम भी दीपा सराय के बड़े उद्योगपतियों में आता है और बाबू इरफ़ान जी तो एक समाज सेवक के रूप में भी जाना जाता है

 नौकरशाही में संभल के प्रतिनिधित्व की बात आए तो कौन भूल सकता है कि दीपासराय के निवासी नासिर कमाल एडीजी भी रहे हैं। अतीत में जावेद उस्मानी उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव रह चुके हैं।

संभल के कबाब खाने के शौकीन लोगों की पहली पसंद हुआ करते है। वही हकीम ज़फर का नाम दुनियां में बेहतरीन इलाज़ के लिए जाना जाता है। देश विदेश से लोग हकीम जफर साहब के पास आते है।

सियासी अतीत में जाएं तो इसहाक संभली, नवाब महमूद, जैसे दिग्गज नेताओं से जुड़ता है। मौजूदा परिवेश में आएं तो पूर्व सांसद डा. शफीकुर्रहमान बर्क, कैबिनेट मंत्री नवाब इकबाल महमूद और पूर्व मंत्री अकीलुर्रहमान खां, उर्दू अकादमी की अध्यक्ष तरन्नुम अकील और इसी अकादमी के अध्यक्ष रहे आजम कुरैशी का नाम आता है।

इन सभी उपलब्धियों के बाद भी उत्तर प्रदेश की सभी सरकारों ने संभल की हमेशा अनदेखी की है और संभल को हमेशा हासिये पर रखा है।

वर्तमान समय में संभल विधानसभा से नवाब इक़बाल महमूद (समाजवादी पार्टी) विधायक है। वही सासंद सतपाल सैनी भारतीय जनता पार्टी से है। (2018 Source Jantantra)

(Source जनपत्र )
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