विधानसभा चुनाव 2018 : विश्लेषण



मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018 (Madhya Pradesh Assembly Election 2018) में भाजपा को कांग्रेस के हाथों करीबी अंतर से हार का सामना करना पड़ा और शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) लगातार चौथी बार मुख्यमंत्री बनने से चूक गए। मात्र 4,337 वोटों का कांग्रेस के पाले में जाना भाजपा के लिए हार का कारण बना। अगर मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018 के हर एक असेंबली सीट पर जीत और हार के अंतर का विश्लेषण किया जाए तो सामने आता है कि भाजपा को सिर्फ 4,337 वोट और मिल जाते तो शिवराज सिंह चौहान चौथी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री होते। भारतीय चुनाव आयोग (Election Commission of India) की ओर से उपलब्ध कराए गए मतगणना के आखिरी आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश विधानसभा की 10 सीटें ऐसी रहीं जहां जीत और हार का अंतर 1,000 वोट से भी कम रहा।

भाजपा को बेहद ही करीबी मुकाबले वाले इन 10 सीटों में से सिर्फ 3 पर विजय हासिल हुई और बाकी 7 सीटें कांग्रेस के पाले में चली गईं। भाजपा को जिन सिटों पर 1000 से कम वोट के अंतर से कांग्रेस ने हराया उन सभी सीटों पर नोटा (NOTA) को दिए गए वोट भाजपा और कांग्रेस के बीच हार के अंतर से ज्यादा थे। भाजपा को जिन सात सीटों पर कांग्रेस के हाथों सिर्फ 1000 से कम वोटों से हार का सामना करना पड़ा है, अगर हम उन सभी सीटों पर हार और जीत के आंकड़ों को जोड़ लें तो यह कुल 4,337 वोट बैठता है। यानी भाजपा को अगर  4,337 वोट और मिल जाते तो उसके खाते में यह 7 सीटें आ जातीं और वह बहुमत के लिए जरूरी 116 के जादुई आंकड़े को छू लेती। ऐसे में कांग्रेस की सात सीटें घट जातीं और विधानसभा में उसका आंकड़ा 114 से घटकर 107 रह जाता।

ग्वालियर दक्षिण सीट पर कांग्रेस ने भाजपा को 121 वोटों से हराया
लेकिन इस बार भाग्य ने कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी का साथ दिया। तभी तो 1000 वोटों से भी कम अंतर से हार जीत का फैसला होने वाली 10 सीटों में से 7 यानी 70% पर कांग्रेस को जीत मिली। जीत-हार के 1000 वोट से कम अंतर वाली सीटों में से ग्वालियर दक्षिण की सीट पर वोटों का अंतर सबसे कम रहा। यहां कांग्रेस के प्रवीण पाठक ने बीजेपी के नारायण सिंह कुशवाह को महज 121 वोट से हराया। मालवा क्षेत्र के मंदसौर जिले की सुवासरा सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार को भाजपा के उम्मीदवार से महज 350 वोट ज्यादा मिले। जबलपुर उत्तरी, बियाओरा, दमोह, राजनगर, राजपुर (सुरक्षित) सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बीच जीत और हार का अंतर 500 से 1000 वोटों के बीच रहा।



मध्यप्रदेश की कुल 230 सीटों में से 20% पर हुआ कांटे का मुकाबला
गत 28 नवंबर को राज्य में हुए मतदान में कुल 3 करोड़ 77 लाख मतदाताओं ने अपने मत का प्रयोग किया। जिसमें भाजपा को 41% और कांग्रेस को 40.9% प्रतिशत मत मिले। दरअसल भाजपा को इस बार कांग्रेस से 47,824 वोट ज्यादा मिले, बात सिर्फ 4,337 वोटों से बिगड़ गई। मध्य प्रदेश में ऐसी 18 सीटें रहीं जहां जीत और हार का अंतर 2,000 वोट से कम रहा। इसी तरह 30 सीटों पर जीत और हार का अंतर 3,000 से कम रहा। वहीं 45 सीटें ऐसी रहीं जहां जीत और हार का अंतर 5,000 से कम रहा। ऐसे में मध्य प्रदेश की कुल 230 सीटों में से 20% प्रतिशत सीटें ऐसी रहीं जहां भाजपा और कांग्रेस के बीच जोरदार टक्कर हुई। लेकिन भाग्य इस बार शिवराज सिंह चौहान के साथ नहीं था और भाजपा को कांग्रेस के हाथों राज्य में सत्ता गंवानी पड़ी।



ऐसा माना गया था कि कर्नाटक में अपनी साख खो चुके भाजपा के 'चाणक्य' पांच राज्यों की विधानसभा चुनावों में पहले की तरह ही उभर के आएंगे.

तीन राज्यों में चुनावी हार के बाद राफ़ेल के मुद्दे पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले अमित शाह ने चुनाव परिणाम पर कुछ नहीं कहा. उन्होंने कहा कि वह चुनाव परिणाम पर अगले दो दिनों में प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे जिसमें हार की वजहों के बारे में कहा जाएगा.

हालांकि, इन नतीजों से भाजपा प्रमुख अमित शाह की 'चाणक्य बुद्धि' को लेकर लोगों की अपेक्षा ग़लत साबित हुई.

अन्य राज्यों की ही तरह इन राज्यों में भी कई अनुमानों में भाजपा की हार का अंदेशा जताया गया था जो वाकई सच हो गया.

अमित शाह की रणनीतियों में वह बात थी जिसका न केवल प्रधानमंत्री और भाजपा के समर्थक बल्कि राजनीति के दिग्गज भी लोहा मानते थे.


हर हाल में चुनाव जीतना और सत्ता पाने के लिए किसी भी हद तक जाने की कोशिश को चाणक्य बुद्धि कहना सही है या ग़लत, वह अलग चर्चा है.

गुजरात विधानसभा के चुनाव के दौरान भाजपा को काफ़ी मेहनत करनी पड़ी थी. फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी वहां आकर चुनाव प्रचार की कमान संभालनी पड़ी, हर दांव खेला गया, तब जाकर बहुत ही कम अंतर से भाजपा को जीत मिली थी.


उसके पहले कश्मीर में अकेले सरकार बनाने का अमित शाह का मिशन विफल रहा था और बाद में वहां महबूबा मुफ़्ती के साथ सत्ता में साझेदारी करनी पड़ी.

इन सबके बावजूद अमित शाह की दूरंदेशी चाणक्य प्रतिष्ठा को आंच नहीं आई थी.

कर्नाटक में दांव-पेंच और तिकड़म से भी भाजपा की सरकार नहीं बन सकी, तब अमित शाह की नहीं हारने वाली साख पर पहली बार पैबंद लगा था.

अब पांच राज्यों के नतीजे आने के बाद, उनकी अजेय छवि में गिरावट आई है. नतीजों के बाद हार-जीत के कारण देना आसान है.

स्थानीय मुद्दे, सत्ता विरोधी रुख़, स्थानीय नेताओं का दबदबा, उम्मीदवारों के चुनाव में मोदी-शाह के बदले स्थानीय नेताओं की सूची को अहमियत देना, इन मुद्दों को राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भाजपा की हार के लिए अहम माना जा सकता है. बहुत हद तक ये सच भी है. पर ये सब वे वजहें हैं जो चुनाव के पहले से मौजूद थीं.

इन सबके ऊपर अमित शाह के नेतृत्व पर विश्वास करते हुए इन राज्यों में भाजपा के उज्जवल भविष्य की आशा की जा रही थी.

स्थानीय कारणों के आंशिक असर हो सकते हैं लेकिन एक भरोसा यह भी था कि 'आख़िर अमित शाह तो हैं हीं.'
(Source BBC)
Powered by Blogger.