मौलवी इनायत अली खां : सिसौना

 मौलवी इनायत अली खां (काल्पनिक तस्वीर)

मौलवी इनायत अली खां, बहादुर खां के फ़रज़न्दे अकबर थे और बचपन से ही बड़े दानिश्वर थे! उनका वजूद १८२० में इस दुनिया में आया और १८ वी शताब्दी के अंत में इस दुनिया से रुखसत हुए | कहा जाता है की १८०० बीघा ज़मीन के मालिक होते हुए भी उनके भीतर ज़रा भी घमंड का भाव नहीं था और उनका सारा ध्यान दिनी तालीम और मालूमात की और रहता था !

बहादुर खां अक्सर अपने सभी बड़े फैसले लेते वक़्त उनकी राय(मशवरा) ज़रूर लेते थे ! कहा जा सकता  है कि बहादुर खां और इनायत अली खां के मिजाज़ में वैसे ही फ़र्क़ था जैसे बाबर और हुमायूँ के मिजाज़ में ! बहादुर खां, मिजाज़ से जितने आक्रामक व बहादुर इंसान थे, इनायत अली खां उतने ही सीधे व सरल व्यक्तित्व के धनि थे !

इनायत अली खां के बारे में जो बात विशेष रूप से प्रसिद्ध है वो यह की वह बड़े दानी किस्म के व्यक्ति थे! उन्होंने अपनी खेती की ज़मीन के साथ-साथ घर की ज़मीन भी दान में दी थी! गाँव के गरीब गुरबा लोग उनकी इसी आदत की वजह से उनसे काफी प्रसन्न रहते थे ! उनके दानी स्वभाव की वजह से उनके पास १८०० बीघा ज़मीन में से १६०० बीघा ज़मीन ही रह गई थी ! उन्होंने सिसौना गांव की खुशहाली के लिए कई कार्य किये और गांव के तालाब का संरक्षण भी करवाया ! ग्राम तारापुर और सिसौना को जोड़ने वाली सड़क का निर्माण, सिसौना व कासमपुर को जोड़ने वाले  मार्ग का निर्माण भी उनके देख रेख में ही हुआ !

सिसौना के आलावा आस पास के गांव जैसे उकसी, शाहगढ़, कासमपुर, खरसोल, चौकोनी, गंगपुर, नयागांव, सायगढ, अबुसैदपुर, अहलादपुर, रायपुर, समथल, जसरथपुर, स्योंडारा, देवीपुरा और बड़ागांव में भी उनका काफी नाम था और इन गाँवों के सभी पंचायती फैसलों में उनका खास योगदान था!

इनायत अली खां, अंग्रेज़ो से काफी नफरत करते थे उनकी अंग्रेज़ो से नफरत इस हद तक थी कि जब ज़िले में दूसरा कलेक्टर आया तो उसे इस खानदान से मिलने की जिज्ञासा हुई उस समय इनायत अली खां ही गाँव के नम्बरदार थे! उस दौर में, खासकर इस्लाम धर्म के लोगों में विज्ञान और अंग्रेजी की पढ़ाई को अच्छा नहीं समझा जाता था ! क्यूंकि विज्ञान को क़ुरान और हदीस के खिलाफ व अंग्रेजी को अंग्रेज़ो की ज़बान समझा जाता था ! अतः इनायत अली खां ने अँगरेज़ ऑफिसर से मिलने से इंकार कर दिया ! जिसके कारण उस अँगरेज़ ऑफिसर ने इसको अपनी बेइज़्ज़ती समझा तथा पिछले ज़िलाधीश द्वारा जारी किये गए सरकारी नौकरी देने वाले आदेश को उसने ख़ारिज कर दिया!

 शायद इसी नकारात्मक सोच की वजह से मुस्लिम समाज अंग्रेजी और विज्ञान क्षेत्र में पीछे है!   इसे उस समय के मुस्लिमों की मूर्खता ही कहा जा सकता है! इनायत अली खां की इस नकारत्मकता का खामियाज़ा आने वाली पीढ़ियों को चुकाना पड़ा वरना हर पीढ़ी का एक व्यक्ति सरकारी महकमे में होता! मगर सच यह भी है की उस दौर में सरकारी नौकरी को अच्छा नहीं समझा जाता था! क्यूंकि सरकारी नौकरी अंग्रेज़ो के नीचे करनी होती थी और कोई भी भारतीय इंसान अँगरेज़ सरकार का गुलाम बनना नहीं चाहता था ! शायद उस वक़्त के हालातो को देखते हुए ही इनायत अली खां ने यह फैसला लिया होगा !

(लेखक सिसौना गांव के एक वरिष्ठ नागरिक हैं )
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