सर सैयद अहमद खान के 204 वें जन्मदिन पर एच एम ग्लोबल स्कूल में भव्य प्रोग्राम आयोजित किया गया !


सर सय्यद डे सेलिब्रेशन

 सम्भल सर सय्यद डे सेलिब्रेशन के भव्य आयोजन में नामचीन हस्तियों ने हिस्सा लिया। दूर दराज़ से बड़ीतादात मे अलीगेरियन कार्यक्रम में पहुंचे। अलीग कम्यूनिटी सम्भल के तत्वावधान में सर सय्यद डे सेलिब्रेशनका भव्य आयोजन एचएम ग्लोबल स्कूल हसनपुर रोड पर किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ साद अली ने तिलावत क़ुरआने करीम से किया। 


शहजाद अहमद तुर्क
(कार्यक्रम संचालक) शहजाद अहमद तुर्क

 इस दौरान मुख्य अतिथि चीफ गेस्ट-पदम् श्री अख्तरुल वासय ने  बोलते हुए कहा कि सर सय्यद का मकसद था समाज मे सुधार हो,  और इसके लिए उन्होंने कहा है कि सुधार के लिए तालीम ही एक ऐसी  कुंजी है जो इसको कर सकती है, बिना शिक्षा के न कोई सुधार हो सकता है ना बदलाव हो सकता है, न कोई परिवर्तन। उनका असल  मकसद तालीम के लिए था। एएमयू की स्थापना कर सर  य्यद साहब ने जो अहसान हम लोगो के ऊपर किया है उसको कभी   नहीं भूल सकते। आज दुनियाभर में इल्म की रोशनी फैलाने वाले सर सय्यद साहब, हमे यूनिवर्सिटी देकर गए हम सबको  चाहिये की हम अपने बच्चों को ज्यादा से ज्यादा तालीम दें। 

 विशिष्ट अतिथि डॉ0 मोहम्मद शाहिद डिप्टी   डायरेक्टर सर   सय्यद  एकेडमी एएमयू   अलीगढ़, क़ुरबान अल हेड ऑरल हिस्ट्री     प्रोजेक्ट राज्यसभा टीवी एन्ड, फॉर्मर   सीनियर जर्नलिस्ट बीबीसी,  सुहैल

मुख्य अतिथि अख्तरुल वासे (पदम् श्री)
साबिर डिपार्टमेंट ऑफ केमिस्ट्री एएमयू   अलीगढ़, हिमाल अख्तर एडवोकेट दिल्ली   हाईकोर्ट, वाइस चैयरमेन बार कौंसिल   ऑफ   दिल्ली, मोहम्मद आसिफ खान    डायरेक्टर सेंटर ऑफ प्रोफेशनल कोर्स 
एएमयू अलीगढ़, शहर इमाम सम्भल मौलाना आफताब हुसैन वारसी रहे। सभी मेहमानों का गुलदस्ते भेंट कर एवम बैंच लगाकर स्वागत किया गया। वक्ताओं ने कहा कि आज हम उन्ही की याद में सर सय्यद डे सेलिब्रेशन मना रहे है यह एक अटूट संगम है अलीगेरियन का ! 

 इस बहाने हम सब एक जगह जमा हुए। इस मौके पर शहर विधायक इक़बाल महमूद, सांसद पौत्र जियाउर्रहमान बर्क़ साहब, हकीम ज़फ़र, लुक़मान अहमद सादिक, मुशीर खां तरीन, आशकार हुसैनहाफिज उर रहमान फलाही, अता उर रहमान,  हाजी अजीब उर रहमान,  हाजी हसीब उर रहमान, हाजी सबीह उद्दीन, अज़ीम उद्दीन, फैसल कसीर, कलीम अशरफ, उमेद अली, अतहर उल्लाह, चौधरी, अशरफ, डॉक्टर मोहम्मद शारिक, मंज़र उल हक, डॉक्टर जिकरुल हक, सय्यद हकीम नेमत, मो0 इमरान, डॉ0 सलीम, चौधरी मुदब्बिर आदि शामिल रहे ।

वरिष्ठ पत्रकार कुर्बान अली के साथ अलीग



























इसके आलावा फैसल, मोहम्मद फैज़ान,  जावेद, अलमास, काशिफ, जुनैद, यासिर, असजद,

वसीम, आसिफ, राईस, ताबिश, लबीब, हारिस, मुस्तफा, फैज़ान, गुल मोहम्मद, शेर मोहम्मद, कमर

 हुसैन, शहज़ाद, साजिद, जमशेद, खालिद, तंज़ीम रज़ा, इमरान पाशा उर्फ़ बॉबी, मतीन, रेहान, शारिक, क़मर,

ज़ैद, साकिब, वकास आदी मौजूद रहे !



सर सैयद अहमद खां और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना


इसमें कोई दोराय नहीं कि सैयद अहमद खान उस दौर के सबसे ज़हीन इंसानों में से एक थे. गणित, चिकित्सा और साहित्य कई विषयों में वे पारंगत थे. इस बात की गवाही मौलाना अबुल कलाम का वह भाषण है जो उन्होंने 20 फ़रवरी,1949 को एएमयू में दिया था. उन्होंने कहा था, ‘मैं मानता था, मानता हूं कि वे (सैयद अहमद) 19वीं शताब्दी के सबसे महान इंसानों में एक थे.’ उनका यह भी मानना था कि जो हैसियत बंगाल और हिंदुओं के बीच राजा राम मोहन रॉय की थी, वही कद सैयद अहमद खान का उत्तर भारत में और ख़ासकर मुसलमानों के बीच था. आज़ाद यहीं नहीं रुके. उन्होंने सैयद खान को भारतीय मुसलामानों के सामाजिक संघर्ष का झंडाबरदार बताया.

Sar Sayed Ahmad Khan

सैयद अहमद खान को लगने लगा था कि हिंदुस्तान के मुसलमानों की ख़राब हालत की वजह सिर्फ उनकी अशिक्षा नहीं बल्कि यह भी है कि उनके पास नए ज़माने की तालीम नहीं. लिहाज़ा, वे इस दिशा में कुछ विशेष करने की लगन के साथ जुट गए. उनकी इस लगन का हासिल यह हुआ कि जहां भी उनका तबादला होता, वहां वे स्कूल खोल देते. मुरादाबाद में उन्होंने पहले मदरसा खोला, पर जब उन्हें लगा कि अंग्रेजी और विज्ञान पढ़े बिना काम नहीं चलेगा तो उन्होंने मुस्लिम बच्चों को मॉडर्न एजुकेशन देने के लिए से स्कूलों की स्थापना की.

फिर उनका तबादला अलीगढ़ हो गया. वहां जाकर उन्होंने साइंटिफ़िक सोसाइटी ऑफ़ अलीगढ़ की स्थापना की. हिंदुस्तान भर के मुस्लिम विद्वान अलीगढ़ आकर मजलिसें करने लगे और शहर में अदबी माहौल पनपने लगा. उन्होंने ‘तहज़ीब-उल-अखलाक़’ एक जर्नल की स्थापना की. इसने मुस्लिम समाज पर ख़ासा असर डाला और यह जदीद (आधुनिक) उर्दू साहित्य की नींव बना. मौलाना आज़ाद ने कभी कहा था कि उर्दू शायरी का जन्म लाहौर में हुआ, पर अलीगढ़ में इसे पनपने का माहौल मिला. इससे हम समझ सकते हैं कि सैयद अहमद खान का योगदान कितना बड़ा है.

सैयद अहमद खान ने अंग्रेज़ी की कई किताबों का उर्दू और फ़ारसी में तर्जुमा करवाया. इस्लाम की कुरीतियों पर छेनी चलाई. वे काफ़िर कहलाये गए. उनके सिर पर फ़तवा जारी हुआ. इन सबकी फ़िक्र किये बगैर वे सिर्फ़ एक ही बात बोलते, ‘जो चाहे मुझे नाम दो, कोई परवाह नहीं, अपनी औलादों पर रहम खाओ, स्कूल भेजो. वरना पछताओगे.’

वे इस कदर जुनूनी हो गए थे कि मुसलमान बच्चों स्कूलों के निर्माण के लिए पैसा इकट्ठा करने की खातिर उन्हें नाटक करना या ग़ज़ल गाना भी गवारा था. वे मुसलमानों से अक्सर कहा करते कि दुनिया को इस्लाम के बजाय अपना चेहरा दिखाओ, यह दिखाओ कि तुम कितने तहज़ीब-याफ़्ता, पढ़े-लिखे और सहिष्णु हो.

1875 में उन्होंने मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना की. यही बाद में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी कहलाया. सैयद अहमद खान इसे कैंब्रिज यूनिवर्सिटी की तर्ज़ पर आगे ले जाना चाहते थे पर फिर उन्हें सिर्फ एक कॉलेज से ही संतुष्ट होना पड़ा.

 
एच एम ग्लोबल स्कूल संभल में मनाया गया सर सैयद अहमद खान का जन्मदिवस

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